शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

हो मंगलमय उत्कर्ष

 नव वर्ष के अवसर पर मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं
नई उम्मीद
नया विश्वास
नया सफर
नई शुरुआत
मैं कर रहा हूं
इस चाहत के साथ
कि
दीवाली से बीतें दिन
माह रहें मधुमास
साल रहें ऎसे जैसे
जीवन को सौगात
हर दिन,माह और वर्ष
हो सुखों का स्पर्श
समृद्धि का साथ रहे
हो मंगलमय उत्कर्ष ॥

रविवार, 26 दिसंबर 2010

आइए रामेश्वरम् चलें

प्रिय पाठको 
बहुत समय बाद आपसे रु-ब-रु हो रहा हूं। पिछले कुछ समय से चल रही व्यस्तताओं के कारण ऎसा हुआ जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं। इस वर्ष सितम्बर-अक्तूबर में रामेश्वरम्‍ तमिलनाडू जाना हुआ। उसी समय से इच्छा थी कि आपको विस्तार से इस यात्रा का वृतान्त लेख के माध्यम से बताऊं पर समय की इजाजत के अभाव में चित्रों के माध्यम से अपनी इच्छा व्यक्त कर रहा हूं। लेकिन उम्मीद है कि रामेश्वरम्‍ तथा उसके आसपास के ये चित्र भी वहां की गौरवपूर्ण संस्कृति के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट कर  देंगे । यहां चित्रों के साथ मरीना बीच (चेन्नई) का एक चलचित्र भी आपकी नज़र है, प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी।




मरीना बीच चेनई का एक चलचित्र

 








शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

शुभ दीपावली

सूरज की आभा से 
आगाज़ हो चुका है
रोशन ज़माना 
चहुं ओर हो चुका है
है दीवाली की सुबह
सब ओर इक उमंग है
आज हर दिल 
बना इक पतंग है
दिन खुशनुमा है
रात भी खास होगी
हर दीये की अंधेरे से
कड़ी जंग होगी
मां लक्ष्मी भी 
मेहरबान होंगी
खुशियों की भरपूर 
बरसात होगी 
फिर आयेगी 
दुनिया में खुशहाली
ना वैर-भाव की
कोई बात होगी
क्या तेरी क्या मेरी
आज 'हम' की बात होगी
है तेरी भी दुनिया
है मेरी भी दुनिया
प्रगति और सद्भाव की
शुरुआत होगी॥

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

स्वस्थ जीवन

स्वच्छ हवा और पानी  |
स्वस्थ जीवन की निशानी ||
पेड़ पौधों से करो प्यार |
स्वस्थ जीवन का यही आधार ||
पेड़ पौधों का  रखो ख्याल |
जीवन बना रहे खुशहाल ||
स्वच्छ पर्यावरण
बेहतर जीवन के लिए 
एक आवरण ||

रविवार, 15 अगस्त 2010

आजादी

आजादी की ६३वीं वर्षगांठ पर आपको हार्दिक शुभकामनांए।

क्या याद हैं
वो बलिदान की कहानी
मां की आंख का पानी
विधवा जवानी
बाप
नहीं था
जिसकी आंख में पानी
जिससे हुईं नसीब
ये आजाद जिंदगानी
क्या याद है
वो बलिदान.............।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

साहब का कुत्ता

उस दिन
उसने 
मुझसे कहा कि
मैं कुत्ता बनना चाहता हूं
वही कुत्ता
बेबी की गोद में
बैठा दुम हिलाता है
गाड़ी में घूमने जाता है
दूध और बिस्किट का
नाश्ता पाता है
गली का नहीं
साहब का कुत्ता
कहलाता है।

शनिवार, 19 जून 2010

प्रीत

मेरे मीत
मेरे तन में
बसे मन से
तुम्हारी प्रीत
कुछ ऎसी 
होती है प्रतीत
जैसे तम से भरे
मेरे मन में
जला कर रख दिया हो
किसी ने कोई दीप
वैसे भी
मेरे मन पर 
तुम्हारी जीत
कुछ ऎसी ही है
जैसे हो कोई
जगत की रीत
या फिर
गहरी अंधेरी रात के बाद
नव-प्रभात
जैसे फूल में सुगंध
मेहंदी में लाल रंग
मधु में मकरंद
कुछ इसी तरह हो
तुम मेरे संग-संग॥

मंगलवार, 15 जून 2010

अपनी अहमियत है

जिन्दगी में प्यार की
बसंत में बहार की
गीता के सार की
अपनी अहमियत है |


बागों में फूलों की
मेले में झूलों की
जीवन में उसूलों की
अपनी अहमियत है |


तरकश में तीर की
भोजन में खीर की
तरलों में नीर की
अपनी अहमियत है |


युद्ध में वीरों की
गणित में जीरो की
फ़िल्म में हीरो की 
अपनी अहमियत है |


दिनों में इतवार की
दोस्ती में  ऐतबार की
काव्य में अलंकार की
अपनी अहमियत है |


जेवरों में शाइन की
पार्टी में वाइन की
जंगल में लायन की
अपनी अहमियत है |


फूलों में गुलाब की
रातों में ख्वाब की
दफ्तर में साहब की
अपनी अहमियत है |


रसों में श्रृंगार का
आभूषणों में हार का
मुंह में लार की
अपनी अहमियत है |


त्योहारों में दीवाली की
शहरों में बरेली की
मकानों में हवेली की
अपनी अहमियत है |


मेरे लिए आपकी
हर पल साथ की
दिल की बात की
अपनी अहमियत है ||

शनिवार, 5 जून 2010

समस्या

उस दिन
अचानक
नेता जी ने
अपने सहयोगियों की
एक सभा बुलायी
उनके सामने
अपनी समस्या बतायी
वे बोले,
दोस्तो मेरे साथ
धोखा हुआ है
एक दलाल ने
भर्ती का
मेरा हिस्सा
मार लिया है
अब तुम ही बताओ
उसका
क्या हाल किया जाए
मार दिया जाए
कि छोड़ जाए।

रविवार, 16 मई 2010

दरकार

अगर आप
गलती से
वफादार और
ईमानदार हैं
तो इस दुनिया के लिए
बेकार हैं
नहीं आज
आप से लोगों की
दुनिया को दर
कार
आखिर
बेइमान मक्कारों की
हो चली
है कमी बड़ी भारी
इनके लिए की जाती हैं
रिक्तियां जारी
वैसे भी आज के दौर में
बहुधा
इक्यावन गधे पड़ते हैं
उन्नचास घोड़ों पर भारी॥

गुरुवार, 13 मई 2010

ब्लॉग संचार

हिन्दी ब्लॉग जगत के प्रचार और प्रसार के लिए हम सभी के द्वारा प्रयासों की आवश्यकता है। क्योंकि विश्व स्तर पर तथा ब्लॉग जगत में हिन्दी का स्थान अभी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। एतदर्थ हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सुझाव के अनुसारएक ब्लॉग एग्रीगेटर बनाया है ‘‘ब्लॉग संचार’’ आपसे अनुरोध है कि अपने ब्लॉग को यहां शामिल करें और दूसरों से भी करवायें


सोमवार, 10 मई 2010

हो सकता है ऐसा भी

हालात आज के देख- देखकर
मुझको लगता है कभी-कभी
पूरी दुनिया बदल जाएगी
हो सकता है ऐसा भी

घी-दूध के सपने लेगा
इनको तरसेगा व्यक्ति
शायद बन जायें इंजेक्शन
हो सकता है ऐसा भी

जनता की लाचारी देखो
भूख मिटाने को बने गोलियां
हो सकता है ऐसा भी

गुरु शिष्य की परंपरा
हो बात ज़माने बीते की
एक मेज पर बैठ पीयेंगे
हो सकता है ऐसा भी

क्या होगा भविष्य प्रेम का
जब होगा कामुक हर प्रेमी
अवैध प्रेम बन जाये
हो सकता है ऐसा भी

परिचय पत्र बनाने लगेंगे
जिनसे सिद्ध ईमानदारी होगी
उस पर भी मोल लिखा होगा
हो सकता है ऐसा भी

क्षमा चाहता हूँ आपसे
सुधर जाऊंगा मैं भी
पर क्या सुधरेगी दुनिया
हो सकता है ऐसा भी ||

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

अच्छा लगता है

तेरी यादों में खो जाना अच्छा लगता है

और आंखों में ख़्वाब सजाना अच्छा लगता है


दुनिया की दौलत तो हमसे कब की छूट गयी

ग़म का अब अनमोल ख़जाना अच्छा लगता है


उनके घर भी इक दिन इक चिंगारी भड़केगी

जिनको घर-घर आग लगाना अच्छा लगता है


वो सैयाद की साजिश से नावाकिफ़ होता है

जब पंछी को आबो-दाना अच्छा लगता है


सच कहता फिरता है जो झूठे इन्सानों को

मुझको वो पागल दिवाना अच्छा लगता है


बात चली जब महफ़िल में तो ज़िक्रे उल्फ़त पर

तेरी पलकों का झुक जाना अच्छा लगता है॥


साभार : श्री गुलशन मदान


शनिवार, 10 अप्रैल 2010

निशाना

क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|

शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

क्या देगा, उससे दान.....

आज आपके लिए गुलशन मदन की एक गज़ल

भूगोल उसका पेट है, विज्ञान भूख है
मुफ़लिस से ब्रह्म ज्ञान की बातें न कीजिए

लड़ना है आपको तो लड़ें अमन के लिए
ये तीर और कमान की बातें न कीजिए

दौलत बशर के पास कभी है, कभी नहीं
दौलत की झूठी शान की बातें न कीजिए

खुद जी रहा जो दूसरों के हक़ को छीनकर
क्या देगा, उससे दान की बातें न कीजिए
......................


दोस्तों, जिस साहित्य सभा कैथल हरियाणा के प्रयास के फल-स्वरुप मैं आपसे मुखातिब होने का साहस जुटा पाया आज उसी साहित्य सभा कैथल ने ब्लॉग संसार में कदम रखा है और आपसे स्वागत की अपेक्षा रखता हूँ | अपने स्नेहिल वचनों से इस पौधे को जरुर अभिसिंचित करें | जरुर आइयेगा:-
www.sahityasabhakaithal.blogspot.com


रविवार, 21 मार्च 2010

तू साथ चल

प्रिय पाठको ,
नव संवत्सर की शुभकामनाएं। शुभकामनाओं में विलम्ब के लिए क्षमा-प्रार्थी हूं। पर हां,स्मरण रहे मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं । आपसे बहुत समय पहले एक वायदा किया था कि आपको कैथल (हरियाणा) के साहित्य-धर्मियों से और उनकी रचनाओं से परिचित कराऊंगा तो शुरुआत कर रहा हूं ।
कैथल के प्रसिद्ध गज़ल़कार गुलशन मदान से जो किसी परिचय के मोहताज मुझे जान नहीं पड़ते।उनके बारे में अगली प्रस्तुति में विस्तार से बताऊंगा ,पर आज उनके चंद शेर जो आपके दिमाग में उनकी पहचान बनाने में सक्षम मालूम होते हैं। लीजिए प्रस्तुत हैं -
बनके मेरा हमकदम तू साथ चल
कुछ तो हो तन्हाई कम तू साथ चल ।
खुश नहीं तू भी बिछड़ने से मेरे
मेरे भी दिल में हैं गम तू साथ चल ॥

दुनिया से कुछ ध्यान हटाकर देखो तो
खुद को इक आवाज लगाकर देखो तो।
भूल से भूल नहीं पाओगे तुम
दिल से अपने मुझे भुलाकर देखो तो ॥

बहुत गहरे उतर कर लिख रहा हूं
मैं कतरे को समन्दर लिख रहा हूं।
मैं अपने दिल का यह सब हाल शायद
तुम्हें अपना समझकर लिख रहा हूं॥
शेष अगली बार ... कईं रचनाएं... पूरे परिचय के साथ ।

रविवार, 28 फ़रवरी 2010

होली मुबारक

वर्तमान हालात कुछ ऎसे प्रतीत होते हैं -
होलिका नहीं
' बस ' जल रही
रं जैसा बरसे पैट्रोल
आग लगी है तन-मन में
कैसे हो कंट्रोल ॥


लेकिन कहते हैं अच्छा सोचना चाहिए-
होली के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

कल मानव की तैयारी(१४११)

है फिक्र किसको
है फुरसत किसे

कौन मिट गया
कौन मिट रहा
नहीं सरोकार
किसी बात से
सिवा खुद के
है चाहता कोई किसे
हर आदमी बस जी रहा
स्वार्थ-निहित जिंदगी
चाहता हर-पल यही
सब करें उसकी बंदगी
कल मिटी इंसानियत
आज बाघ की बारी है
मिट रहा आज बाघ तो
कल मानव की तैयारी है
पर,
फर्क क्या इस बात से
बदल गया है वक्त

इंसानियत के बिना
दिखता नहीं मनुष्यत्व
इस तरह तो अपना भी
नहीं रहेगा अस्तित्व
सच मानिए
अकेला चना
फोड सकता भाड
संपूर्ण प्राणी-जगत की
हमें चाहिए आड
जरूरत है हमें सबकी
अपने लिए
अपना संसार सुंदर
बनाए रखने के लिए
हो जिंदगी सबकी
इस तरह तो दूर तक
नहीं दिखाई कोई देगा
सोचो , एक बार
एकाकी जीवन होगा
बस अपना जीवन.......


बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

उधार

वह कुछ दिन से मोबाइल लेने की सोच रहा था। आज मन बना कर बेटे की दुकान पर गया और बोला,'' बेटा,मुझे भी एक मोबाइल दे दो '' बेटा बोला,'' ले लीजिए डैडी ,पर हाँ... आजकल मैंने उधार देना बन्दकर दिया है।'' बेटे का जवाब सुनकर वह कुछ देर के लिए असमंजस में पड़ गया और कुछ संभलते हुए बस इतना ही कहा- ''ठीक है बेटा,जब पैसे होंगे तब खरीद लूंगा।'' फिर इसके बाद वह मन में उठते हुए अनेक निरुत्तर सवालों का जवाब ढूंढ़ने निकल पड़ा

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

सच्ची संपत्ति

हम इस ब्लाग पर साहित्य और संस्कृति को साथ-साथ लेकर चलते रहे हैं। कभी कविता तो कभी कहानी और कभी विरासत की बात। आज आपसे एक विशेष प्रसंग बांटने जा रहा हूं ,आप इसे विरासत की बात समझें या फिर प्रेरक-प्रसंग ,ये आप के ऊपर छोड रहा हूं। लीजिए प्रस्तुत है-
काफी समय पहले की बात है किसी गांव में स्थित एक आश्रम में एक महात्मा रहते थे। जो काफी वृद्ध हो चुके थे और अब सोच रहे थे कि अपनी जिम्मेदारी किसी और को सौंप दूं। आश्रम के नाम बहुत जमीन-जायदाद थी। एक बार महात्मा जी ने सोचा,'' क्यों न आश्रम की जमीन को गरीबों में बांट दिया जाए ।'' इसके लिए एक दिन उन्होंने आस-पास के गांवों के सभी लोगों को एकत्रित करने की योजना बनायी और बुलावा भेज दिया।
महात्मा जी की इच्छा जानकर बुलावा पाते ही आस-पास के हजारों लोग नियत समय पर आश्रम के बाहर इक्कठे हो गए। जब महात्मा जी ने बाहर आकर देखा और इक्कठे हुए लोगों पर नजर दौडाई तो देखकर हैरान रह गए। क्योंकि वहां आए गरीब लोगों में गांवों के बडे-बडे जमींदार भी शामिल थे जो जमीन पाने की लालसा से आए थे । तब महात्मा जी ने कहा,''सबसे पहले वह व्यक्ति सामने आए जिसके पास सबसे ज्यादा जमीन है।'' उसके आगे आने पर वे बोले,''बोलो कितनी जमीन चहिए ?'' इस पर उस जमींदार ने कहा कि महाराज जितनी मर्जी दे दो । महात्मा जी उसकी बात सुनकर कुछ देर के लिए चुप हो गए और फिर कुछ सोच कर बोले,''आप सांय ५ बजे तक जहां तक दौड कर वापस आ जायेंगे उतनी जमीन आपकी ।'' महात्मा जी की यह बात सुनकर वह जमींदार बहुत खुश हुआ और उसने दौड़ना शुरु कर दिया। वह इतना दौडा कि दौड़ते-दौड़ते हांफने लगा पर अधिक जमीन पाने की लालसा में बहुत दूर चला गया और बहुत दूर पंहुच जाने के बाद उसके दिमाग में वापसी का विचार आया । मगर मन में अभी भी यही इच्छा थी कि दस कदम और......। लेकिन समय पर न पहुंच पाने की चिंता ने उसे वापस मोड़ दिया। पर अब समय बचा ही कहां था जो वह नियत समय पर वापस आश्रम पहुंच पाता। दौड़ते-दौड़ते उसकी सांसें फूलने लगी, कदम लड़खड़ाने लगे और अब उसका शरीर उसका साथ छोड़ रहा था। हांफते-हांफते जैसे ही वह आश्रम के द्वार के पास पहुंचा तो नियत समय लगभग समाप्त हो चला था सो उसने लेट कर आश्रम की देहली को छूना चाहा लेकिन शरीर अब निष्क्रिय हो चुका था, जैसे ही आगे बढ़ने के लिए उसने लेटना चाहा तो वह गिर गया और गिरते ही दम टूट गया।
महात्मा जी की नज़र उस पर पड़ी और उसे एक नज़र देखकर आए हुए जनसमूह से कहने लगे,'' ..और किसको ,कितनी जमीन चाहिए.. आगे आ जाओ।'' उनकी यह बात सुनकर सब लोग पीछे हट गए। तब महात्मा बोले,''यही दो गज़ जमीन जिसमें यह लेटा हुआ है इसकी असली और सच्ची सम्पत्ति है।'' अब किसी आगंतुक के मन में जमीन लेने की इच्छा नहीं रह गयी थी तथा सभी अपने-अपने घर लौट गए ।


मंगलवार, 26 जनवरी 2010

गणतंत्र सौगात

भारतमाता की संतान , भारत-भू की गोद में पोषित , इसकी
रज में खेल सम्पूर्णता प्राप्त करने वाले ,विश्वमें विभिन्न स्थानों
पर विद्यमान सभी भारतीयों को गणतंत्र की हार्दिक शुभ-कामनाएं |
इस अवसर पर एक साधारण भारतीय के उद्गार
बढ़ रहे हैं बेतहाशा
दाल चीनी के भाव
हो रहे कला-बाजारी
निश दिन माला माल
बेबस अब किसान है
मजबूर है सांझीदार
खून के आंसू रो रहा
मजदूर का परिवार
खैर ,चाहे जो होता रहे
नहीं अपने बस की बात
हालत मांगते अब तो
एक संघर्ष शुरुआत
या स्वीकार करें सादर इसे
मन गणतंत्र सौगात ||



शनिवार, 9 जनवरी 2010

कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण उत्सव

धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र संसार में प्रसिद्ध है | इसके जिन स्थानों की प्रसिद्धि संपूर्ण विश्व में फैली हुई है उनमें ब्रह्मसरोवर सबसे प्रमुख है। इस तीर्थ के विषय में विभिन्न प्रकार की किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं। अगर उनकी बात हम न भी करें तो भी इस तीर्थ के विषय में महाभारत तथा वामन पुराण में भी उल्लेख मिलता है। जिसमें इस तीर्थ को परमपिता ब्रह्म जी से जोड़ा गया है । सूर्यग्रहण के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर लाखों लोग ब्रह्मसरोवर में स्नान करते हैं। कई एकड़ में फैला हुआ यह तीर्थ वर्तमान में बहुत सुदंर एवं सुसज्जित बना दिया गया है। कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के द्वारा ब्रह्मसरोवर के मध्य में स्थित एक शिव मंदिर और परिष्ठभूमि में ब्रह्मसरोवर
बहुत दर्शनीय रूप प्रदान किया गया है तथा रात्रि में प्रकाश की भी व्यवस्था की गयी है | आगामी १५ जनवरी २०१० को यहीं सूर्यग्रहण के अवसर पर मेले का आयोजन होने जा रहा है । कुरुक्षेत्र पहुंचना किसी दृष्टि से कठिन नहीं हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या १ (शेरशाह सूरी मार्ग) पर स्थित पिपली से मात्र ३-४ कि०मी० की दूरी पर कुरुक्षेत्र स्थित है। यहां चडीगढ और दिल्ली से रेल द्वारा भी पंहुचा जा सकता है। कुरुक्षेत्र से आप आसपास के महत्त्वपूर्ण तीर्थों सरस्वती तीर्थ एवं फल्गु तीर्थ पर भी पहुंच सकते हैं। कुरुक्षेत्र की विस्तृत जानकारी के लिए आप ब्लाग पर पूर्व प्रकाशित लेख पढ सकते हैं। सूर्यग्रहण के इस उत्सव में आपका स्वागत करने को यह धर्म-नगरी उत्सुकता से आपका इंतजार कर रही है।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट