रविवार, 21 मार्च 2010

तू साथ चल

प्रिय पाठको ,
नव संवत्सर की शुभकामनाएं। शुभकामनाओं में विलम्ब के लिए क्षमा-प्रार्थी हूं। पर हां,स्मरण रहे मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं । आपसे बहुत समय पहले एक वायदा किया था कि आपको कैथल (हरियाणा) के साहित्य-धर्मियों से और उनकी रचनाओं से परिचित कराऊंगा तो शुरुआत कर रहा हूं ।
कैथल के प्रसिद्ध गज़ल़कार गुलशन मदान से जो किसी परिचय के मोहताज मुझे जान नहीं पड़ते।उनके बारे में अगली प्रस्तुति में विस्तार से बताऊंगा ,पर आज उनके चंद शेर जो आपके दिमाग में उनकी पहचान बनाने में सक्षम मालूम होते हैं। लीजिए प्रस्तुत हैं -
बनके मेरा हमकदम तू साथ चल
कुछ तो हो तन्हाई कम तू साथ चल ।
खुश नहीं तू भी बिछड़ने से मेरे
मेरे भी दिल में हैं गम तू साथ चल ॥

दुनिया से कुछ ध्यान हटाकर देखो तो
खुद को इक आवाज लगाकर देखो तो।
भूल से भूल नहीं पाओगे तुम
दिल से अपने मुझे भुलाकर देखो तो ॥

बहुत गहरे उतर कर लिख रहा हूं
मैं कतरे को समन्दर लिख रहा हूं।
मैं अपने दिल का यह सब हाल शायद
तुम्हें अपना समझकर लिख रहा हूं॥
शेष अगली बार ... कईं रचनाएं... पूरे परिचय के साथ ।

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