शनिवार, 27 जून 2009

सरस्वती तीर्थ (पेहवा)

सरस्वती तीर्थ (पेहवा)
कुरूक्षेत्र से 25 कि0मी0 के दूरी पर उत्तर पश्चिम में एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है पेहवा। कहा जाता है कि सप्त सरस्वतियों में से एक ओघवती सरस्वती कुरूक्षेत्र में प्रवाहित होती है। इस विषय में प्राप्त शास्त्रोक्त जानकारी के अनुसार यहां सरस्वती प्रवाहित होती है। जिसका स्वरूप अब बदल चुका है। इसमें वर्षा ऋतु में ही पानी दिखाई देता है। सरस्वती के बारे में जो जानकारी हमें प्राप्त होती है तदनुसार पता चलता है कि सरस्वती सम्पूर्ण नदियों में श्रेष्ठ एवं पाप नाशक नदी है तथा ब्रह्मलोक से आई है। सप्तसरस्वती का संगम होने के कारण पेहवा में सरस्वती तीर्थ है। इस स्थान को श्राद्ध आदि कर्म के लिए भी विशेष दर्जा दिया गया है तथा संपूर्ण भारत में ही नहीं अपितु विश्व भर से श्रद्धालु श्राद्धकर्म हेतु यहां आते हैं। पृथद्क शब्द से इस स्थान का नाम पेहवा पड़ा है। यहां पर निर्मित सरस्वती तीर्थ में लाखों लोग अमावस्या के अवसर पर स्नान करते हैं तथा पितरों के निमित श्राद्धादि कार्य करते हैं।

गुरुवार, 25 जून 2009

जमदग्नि स्थल -जाजनपुर

हरियाणा में कैथल से उत्तरपूर्व की ओर 28 किलोमीटर की दूरी पर जाजनापुर गाँव स्थित है। यहां महर्षि जगदग्नि का आश्रम था। अब यहां एक सरोवर अवशेष रूप में हैं। यहां प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की दसवीं को मेला लगता है। महर्षि जगदग्नि की परम्परा में बाबा साधु राम ने जहां तपस्या की है और अपने शरीर का त्याग किया है। उस स्थान को बाबा साधु राम की समाधि के रूप में पूजा जाता है।
इस सरोवर की आज भी विशेष बात यह मानी जाती है कि इसमें पानी भरने के बाद फूंकार-हंकार की आवाज आती है। पूर्ण लबालब भरा सरोवर भी पन्द्रह दिनों में सुख जाता है। सांपों की इस जगह अधिकता माना जाती है। लेकिन आज तक कोई नुकसान नहीं हुआ।
जनश्रुति के अनुसार महर्षि जगदग्नि ऋचीक के पुत्र और भगवान परशुराम के पिता थे। इनके आश्रम में इच्छित फलों को प्रदान करनी वाली गाय थी जिसे कार्तवीर्य छीनकर अपनी राजधानी माहिष्मति ले गया। परशुराम को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने कार्तवीर्य को मार दिया ओर कामधेनु वापिस आश्रम में ले आए और एक दिन अवसर पाकर कीर्तवीर्य के पुत्रों को भी मार डाला और समस्त पृथ्वी पर घूम-घूमकर इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार किया तब उन्होंने अपने पिता के मस्तक को धड़ से जोडा और उनका अन्त्येष्टि संस्कार सम्पन्न किया। कुरूक्षेत्र भूमि में पांच कुण्ड बनाकर पितरों का तर्पण किया। ये पांचों सरोवर समन्त पंचक-तीर्थ के नाम से विख्यात हुए। जिसे ब्रह्मा जी उतर वेदी कहते हैं वह यही समन्त पंचम तीर्थ है। वामन पुराण में लिखा है कि समन्त पंचक नाम धर्मस्थल चारों ओर पांच-पांच योजन तक फैला हुआ है। सम्भवतः परशुराम द्वारा स्थापित पांचकुण्डों में से एक कुण्ड जाजनपुर का यही स्थल है।

मंगलवार, 23 जून 2009

हरिद्वार से आपके लिए

हरिद्वार का भारतीय में एक विशेष स्थान है | हरिद्वार , काशी , इलाहबाद जैसे तीर्थ स्थान किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं | आज आपके लिए प्रस्तुत हैं हरिद्वार से कुछ छायाचित्र एवं हर की पौड़ी का एक चलचित्र । लीजिए आनंद उठाइए -

पतित पावनी गंगा का एक सुन्दर दृश्य
माता मनसा देवी के मार्ग में एक लंगूर अपने बच्चे को प्रसाद खिलाते हुए
माता मनसा देवी के मंदिर पहुँचाने वाली इलैक्ट्रिक ट्राली
हरिद्वार का एक विहंगम दृश्य

हर की पौड़ी पर गंगा प्रवाह

गुरुवार, 18 जून 2009

प्रिय पाठको ,
पिछले कुछ समय से तीर्थों के बारे में आपको जानकारी दे रहा हूं जिसे भविष्य में जारी रखने का मेरा प्रयास रहेगा | इस सन्दर्भ में अपने अनमोल सुझाव दीजिये तथा मुझ अल्पबुद्धि का मार्गदर्शन करें | आपके सेवार्थ एक और ब्लाग बनाया है : www.preranasandesh.blogspot.com

बिन्दुसर एवं बंटेश्वर तीर्थ

हरियाणा कैथल से उत्तर-पूर्व में 16 किलोमीटर की दूरी पर बरोट-बन्दराणा दो गांव स्थित है जिनकी परस्पर दूरी एक से डेढ किलोमीटर है। बिन्दूसर तीर्थ दोनों गांव को एक करता है। इस स्थान पर कर्दम ऋषि ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र की इच्छा के लिए तपस्या की थी। जिसे भगवान विष्णु की आंखों से जल बिन्दू गिरे थे। उसी स्थान पर यह सरोवर स्थित है। यहां पर विन्धेश्वरी देवी का पूज्य स्थान भी है। बरोट गांव में बटकेश्वर तीर्थ भी है।जिसे बटूकेश्वर महादेव से जोड़ा जाता है। हालांकि कुछ लोग बरोट का सम्बन्ध महर्षि वशिष्ठ से भी जोड़ते हैं।

बुधवार, 17 जून 2009

कामेश्वर महादेव

गांव रसूलपुर कैथल से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां भगवान शिव का विशेष स्थान है। जिसे लोग कामेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं। शास्त्रों के अनुसार देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए यही भगवान शिव की आराधना की थी। रसूलपुर की दूसरी खास बात यह भी है कि यह स्थान धर्मक्षेत्र कुरूक्षेत्र की 48 कोस की पावन भूमि के पश्चिम में स्थित है ।

हव्य तीर्थ

हरियाणा में कैथल से 27 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में पूण्डरी-राजौन्द मार्ग पर भाणा नामक गांव स्थित है। जैसा कि हव्य शब्द से स्पष्ट है कि हव्य अर्थात् हवन की वस्तु। हवन के दौरान अग्नि में दी गई आहुति हव्य कहलाती है। जन-किंवदंतियों के अनसार एक बार इस स्थान पर परमपिता ब्रह्मा ने एक यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें सभी देवी-देवताओ ने भोजन किया था। एक अन्य किंवदंती के अनुसार पाण्ड़वों ने कौरवों पर विजय प्राप्त करने के लिए यहां एक यज्ञ का आयोजन किया था। सूर्य और चंद्र ग्रहण के अवसर पर यहां लोग स्नान करते हैं। हव्य तीर्थ गांव से पूर्व दिशा में 25 एकड़ में फैला हुआ है। दक्षिण पूर्व तट पर एक ऊंचा शिव मन्दिर भी बना हुआ है।

शुक्रवार, 5 जून 2009

रस मंगल तीर्थ (सौंगल)

कैथल से पूर्व-दक्षिण दिशा में 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव सौंगल। एक जनश्रुति के अनुसार ब्रह्मा जी ने यहां देवताओं को सोमरस का पान करवाया था। सोमरस प्रदान करने के लिए जिस यज्ञ का आयोजन किया था। वह यज्ञ स्थल आज भी पांच एकड़ भूमि में फैला हुआ है। ऐसा माना गया है कि यहां 6 रसों की उत्त्पति हुई थी। एक अन्य लोकमान्यता के अनुसार वामन भगवान की स्थली है सौंगल। इस तीर्थ के विषय में महाभारत में लिखा है कि -
ततो वामनकं गच्छेत् त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्।
तत्र विष्णुपदे स्नात्वा अर्चयित्वा वामनम्।

सर्वपापविशुद्धात्मा विष्णलोकमवानुयात।

(महाभारत वनपर्व 83/103/104)
अर्थात् ‘‘तदन्तर तीनों लोकों में प्रसिद्ध वामन नामक तीर्थ में जाना चाहिए। वहां विष्णुपद में स्नान करके भगवान वामन की आराधना करने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और मुक्त होने पर बैकुण्ठ धाम को चला जाता है।’’

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट