शनिवार, 31 मई 2008

आदमी

बिना किसी हलचल के
स्वार्थ रुपी
लक्ष्य के प्रति
एकदम सचेत
आज का आदमी
बगुले के समान
योगी है
जो शिकार का
इंतजार करता है
और जैसे ही
शिकार नजर आता है
उसे उछालकर
तुरंत निगल जाता है।

शुक्रवार, 30 मई 2008

डर

बम धमाकों की हो रही
नित नयी आवाज से
अब डर तो लगने लगा है
आदमी की जात से
आजकल ये आदमी को
हो रहा है क्या
वह धरातल से
पाताल में क्यों जा रहा
देखा गुजरते आदमी को
आदमी की लाश से
अब तो डर लगने.....
वह गिरा ही था,पर
आदमी कईं साथ थे
संभलने की सोचता कि
गुजरे सीने से कईं पांव थे
देखा क्षण भर में ही सबने
नहीं प्राण तन के साथ थे
अब तो डर लगने लगा है
आदमी की जात से
अब तो डर......

शनिवार, 24 मई 2008

मानव

बडा हूँ
अडा हूँ
खडा हूँ
मैं मानव हूँ
नहीं झुकूँगा
नहीं रुकूँगा
और जब तक बस चलेगा
नहीं मरूँगा
मैं मानव हूँ
पथ पर समस्त हूँ
बेशक पथ भ्रष्ट हूँ
फिर भी जीव श्रेष्ठ हूँ
मैं मानव हूँ
पतित हूँ
दिग भ्रमित हूँ
फिर भी अथक सरित हूँ
मैं मानव हूँ
विचारों से भरपूर हूँ
मद में चूर हूँ
पर,मंजिल से दूर हूँ
मैं मानव हूँ
कर्तव्य से विमुख हूँ
तलाशता सुख हूँ
विनाश का मुख हूँ
क्या मैं मानव हूँ ?

शुक्रवार, 23 मई 2008

अमन

हो अमन की शुरुआत
एक नया प्रभात
हर चेहरे पर मुस्कान
भविष्य में हो पूर्ण
दिल का हर अरमान॥

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट