क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|
वादा किया वो कोई और था, वोट मांगने वाला कोई और
1 हफ़्ते पहले
"वसुधैव कुटुम्बकम्" की परिकल्पना
क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 6:38 am
लेबल: अमन सन्देश, निशाना
amansandesh.blogspot.com |
24/100 |
3 Comments:
बहुत उम्दा!
very good dear dinesh ji... your work is very useful for all the persons who want to serve the literature... keep it on....
वाह! बहुत खूब लिखा है..खुद शीशे के मकाँ में रह कर...
गागर में सागर!
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