शनिवार, 10 अप्रैल 2010

निशाना

क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|

3 Comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!

गुलशन मदान said...

very good dear dinesh ji... your work is very useful for all the persons who want to serve the literature... keep it on....

Alpana Verma said...

वाह! बहुत खूब लिखा है..खुद शीशे के मकाँ में रह कर...
गागर में सागर!

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