शनिवार, 19 जून 2010

प्रीत

मेरे मीत
मेरे तन में
बसे मन से
तुम्हारी प्रीत
कुछ ऎसी 
होती है प्रतीत
जैसे तम से भरे
मेरे मन में
जला कर रख दिया हो
किसी ने कोई दीप
वैसे भी
मेरे मन पर 
तुम्हारी जीत
कुछ ऎसी ही है
जैसे हो कोई
जगत की रीत
या फिर
गहरी अंधेरी रात के बाद
नव-प्रभात
जैसे फूल में सुगंध
मेहंदी में लाल रंग
मधु में मकरंद
कुछ इसी तरह हो
तुम मेरे संग-संग॥

6 Comments:

Smart Indian said...

सुन्दर!

roshan jahan said...

is preet ko unhi barkrar rakhiye sir

Maria Mcclain said...

Nice blog, i will visit ur blog very often, hope u go for this site to increase visitor.Happy Blogging!!!

शेरघाटी said...

भाई आभार कि आप को साझा-सरोकार की पोस्ट अच्छी लगी.
हमारे और ठिकाने हैं :
http://hamzabaan.blogspot.com

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com

आप यहाँ भी आयें तो हमें ख़ुशी होगी!

आपकी कई पोस्ट पढ़ गया.अत्यंत सादगी के साथ अपनी बात रखते हुए आप कई बहुमूल्य बात कह जाते हैं.बहुत सुखद अनुभूति हुई यहाँ आकर.

आपका
शहरोज़

गुलशन मदान said...

WELL DONE DINESH ... LAGE RAHO

गुलशन मदान said...

well done dinesh... keep it up

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट