नव वर्ष के अवसर पर मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं
नई उम्मीद
नया विश्वास
नया सफर
नई शुरुआत
मैं कर रहा हूं
इस चाहत के साथ
कि
दीवाली से बीतें दिन
माह रहें मधुमास
साल रहें ऎसे जैसे
जीवन को सौगात
हर दिन,माह और वर्ष
हो सुखों का स्पर्श
समृद्धि का साथ रहे
हो मंगलमय उत्कर्ष ॥
शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010
हो मंगलमय उत्कर्ष
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 8:29 pm 7 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, उत्कर्ष, मंगलमय, मधुमास, वर्ष
रविवार, 26 दिसंबर 2010
आइए रामेश्वरम् चलें
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 8:36 pm 5 टिप्पणियाँ
लेबल: चेन्नई, तमिलनाड, रामेश्वरम्
शुक्रवार, 5 नवंबर 2010
शुभ दीपावली
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 8:56 am 1 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, शुभ दीवाली
रविवार, 24 अक्तूबर 2010
स्वस्थ जीवन
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 10:11 am 0 टिप्पणियाँ
रविवार, 15 अगस्त 2010
आजादी
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 9:18 pm 3 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
साहब का कुत्ता
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 5:46 pm 4 टिप्पणियाँ
लेबल: कुत्ता
शनिवार, 19 जून 2010
प्रीत
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 6:42 am 6 टिप्पणियाँ
मंगलवार, 15 जून 2010
अपनी अहमियत है
जिन्दगी में प्यार की
बसंत में बहार की
गीता के सार की
अपनी अहमियत है |
बागों में फूलों की
मेले में झूलों की
जीवन में उसूलों की
अपनी अहमियत है |
तरकश में तीर की
भोजन में खीर की
तरलों में नीर की
अपनी अहमियत है |
युद्ध में वीरों की
गणित में जीरो की
फ़िल्म में हीरो की
अपनी अहमियत है |
दिनों में इतवार की
दोस्ती में ऐतबार की
काव्य में अलंकार की
अपनी अहमियत है |
जेवरों में शाइन की
पार्टी में वाइन की
जंगल में लायन की
अपनी अहमियत है |
फूलों में गुलाब की
रातों में ख्वाब की
दफ्तर में साहब की
अपनी अहमियत है |
रसों में श्रृंगार का
आभूषणों में हार का
मुंह में लार की
अपनी अहमियत है |
त्योहारों में दीवाली की
शहरों में बरेली की
मकानों में हवेली की
अपनी अहमियत है |
मेरे लिए आपकी
हर पल साथ की
दिल की बात की
अपनी अहमियत है ||
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 8:55 pm 5 टिप्पणियाँ
शनिवार, 5 जून 2010
समस्या
उस दिन
अचानक
नेता जी ने
अपने सहयोगियों की
एक सभा बुलायी
उनके सामने
अपनी समस्या बतायी
वे बोले,
दोस्तो मेरे साथ
धोखा हुआ है
एक दलाल ने
भर्ती का
मेरा हिस्सा
मार लिया है
अब तुम ही बताओ
उसका
क्या हाल किया जाए
मार दिया जाए
कि छोड़ जाए।
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 1:15 pm 4 टिप्पणियाँ
रविवार, 16 मई 2010
दरकार
गलती से
वफादार और ईमानदार हैं
तो इस दुनिया के लिए
बेकार हैं
नहीं आज
आप से लोगों की
दुनिया को दरकार
आखिर
बेइमान मक्कारों की
हो चली
है कमी बड़ी भारी
इनके लिए की जाती हैं
रिक्तियां जारी
वैसे भी आज के दौर में
बहुधा
इक्यावन गधे पड़ते हैं
उन्नचास घोड़ों पर भारी॥
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 7:51 pm 3 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 13 मई 2010
ब्लॉग संचार
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 5:50 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, ब्लॉग संचार
सोमवार, 10 मई 2010
हो सकता है ऐसा भी
मुझको लगता है कभी-कभी
पूरी दुनिया बदल जाएगी
हो सकता है ऐसा भी
घी-दूध के सपने लेगा
इनको तरसेगा व्यक्ति
शायद बन जायें इंजेक्शन
हो सकता है ऐसा भी
जनता की लाचारी देखो
हो सकता है ऐसा भी
गुरु शिष्य की परंपरा
हो बात ज़माने बीते की
एक मेज पर बैठ पीयेंगे
हो सकता है ऐसा भी
क्या होगा भविष्य प्रेम का
जब होगा कामुक हर प्रेमी
अवैध प्रेम न बन जाये
हो सकता है ऐसा भी
परिचय पत्र बनाने लगेंगे
जिनसे सिद्ध ईमानदारी होगी
उस पर भी मोल लिखा होगा
हो सकता है ऐसा भी
क्षमा चाहता हूँ आपसे
सुधर जाऊंगा मैं भी
पर क्या सुधरेगी दुनिया
हो सकता है ऐसा भी ||
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 7:54 pm 2 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, हो सकता है ऐसा भी
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
अच्छा लगता है
तेरी यादों में खो जाना अच्छा लगता है
और आंखों में ख़्वाब सजाना अच्छा लगता है
दुनिया की दौलत तो हमसे कब की छूट गयी
ग़म का अब अनमोल ख़जाना अच्छा लगता है
उनके घर भी इक दिन इक चिंगारी भड़केगी
जिनको घर-घर आग लगाना अच्छा लगता है
वो सैयाद की साजिश से नावाकिफ़ होता है
जब पंछी को आबो-दाना अच्छा लगता है
सच कहता फिरता है जो झूठे इन्सानों को
मुझको वो पागल दिवाना अच्छा लगता है
बात चली जब महफ़िल में तो ज़िक्रे उल्फ़त पर
तेरी पलकों का झुक जाना अच्छा लगता है॥
साभार : श्री गुलशन मदान
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 11:11 pm 0 टिप्पणियाँ
लेबल: अच्छा, अमन सन्देश, गज़ल, गुलशन मदान
शनिवार, 10 अप्रैल 2010
निशाना
क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 6:38 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, निशाना
शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010
क्या देगा, उससे दान.....
मुफ़लिस से ब्रह्म ज्ञान की बातें न कीजिए
लड़ना है आपको तो लड़ें अमन के लिए
ये तीर और कमान की बातें न कीजिए
दौलत बशर के पास कभी है, कभी नहीं
दौलत की झूठी शान की बातें न कीजिए
खुद जी रहा जो दूसरों के हक़ को छीनकर
क्या देगा, उससे दान की बातें न कीजिए
......................
www.sahityasabhakaithal.blogspot.com
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 7:46 pm 2 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, गुलशन मदन की गज़ल
रविवार, 21 मार्च 2010
तू साथ चल
नव संवत्सर की शुभकामनाएं। शुभकामनाओं में विलम्ब के लिए क्षमा-प्रार्थी हूं। पर हां,स्मरण रहे मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ हैं । आपसे बहुत समय पहले एक वायदा किया था कि आपको कैथल (हरियाणा) के साहित्य-धर्मियों से और उनकी रचनाओं से परिचित कराऊंगा तो शुरुआत कर रहा हूं ।
कैथल के प्रसिद्ध गज़ल़कार गुलशन मदान से जो किसी परिचय के मोहताज मुझे जान नहीं पड़ते।उनके बारे में अगली प्रस्तुति में विस्तार से बताऊंगा ,पर आज उनके चंद शेर जो आपके दिमाग में उनकी पहचान बनाने में सक्षम मालूम होते हैं। लीजिए प्रस्तुत हैं -
कुछ तो हो तन्हाई कम तू साथ चल ।
खुश नहीं तू भी बिछड़ने से मेरे
मेरे भी दिल में हैं गम तू साथ चल ॥
दुनिया से कुछ ध्यान हटाकर देखो तो
खुद को इक आवाज लगाकर देखो तो।
भूल से भूल नहीं पाओगे तुम
दिल से अपने मुझे भुलाकर देखो तो ॥
बहुत गहरे उतर कर लिख रहा हूं
मैं कतरे को समन्दर लिख रहा हूं।
मैं अपने दिल का यह सब हाल शायद
तुम्हें अपना समझकर लिख रहा हूं॥
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 7:52 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, गुलशन मदान
रविवार, 28 फ़रवरी 2010
होली मुबारक
वर्तमान हालात कुछ ऎसे प्रतीत होते हैं -
होलिका नहीं
' बस ' जल रही
रंग जैसा बरसे पैट्रोल
आग लगी है तन-मन में
कैसे हो कंट्रोल ॥
लेकिन कहते हैं अच्छा सोचना चाहिए-
होली के शुभ अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 12:39 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: होली
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
कल मानव की तैयारी(१४११)
है फिक्र किसको
है फुरसत किसे
कौन मिट गया
कौन मिट रहा
नहीं सरोकार
किसी बात से
सिवा खुद के
है चाहता कोई किसे
हर आदमी बस जी रहा
स्वार्थ-निहित जिंदगी
चाहता हर-पल यही
सब करें उसकी बंदगी
कल मिटी इंसानियत
आज बाघ की बारी है
मिट रहा आज बाघ तो
कल मानव की तैयारी है
पर,
फर्क क्या इस बात से
बदल गया है वक्त
इंसानियत के बिना
दिखता नहीं मनुष्यत्व
इस तरह तो अपना भी
नहीं रहेगा अस्तित्व
सच मानिए
अकेला चना
फोड न सकता भाड
संपूर्ण प्राणी-जगत की
हमें चाहिए आड
जरूरत है हमें सबकी
अपने लिए
अपना संसार सुंदर
बनाए रखने के लिए
हो जिंदगी सबकी
इस तरह तो दूर तक
नहीं दिखाई कोई देगा
सोचो , एक बार
एकाकी जीवन होगा
बस अपना जीवन.......
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 4:50 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, जीवन, बाघ
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
उधार
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 3:56 pm 7 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, उधार, लघुकथा
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010
सच्ची संपत्ति
काफी समय पहले की बात है किसी गांव में स्थित एक आश्रम में एक महात्मा रहते थे। जो काफी वृद्ध हो चुके थे और अब सोच रहे थे कि अपनी जिम्मेदारी किसी और को सौंप दूं। आश्रम के नाम बहुत जमीन-जायदाद थी। एक बार महात्मा जी ने सोचा,'' क्यों न आश्रम की जमीन को गरीबों में बांट दिया जाए ।'' इसके लिए एक दिन उन्होंने आस-पास के गांवों के सभी लोगों को एकत्रित करने की योजना बनायी और बुलावा भेज दिया।
महात्मा जी की इच्छा जानकर बुलावा पाते ही आस-पास के हजारों लोग नियत समय पर आश्रम के बाहर इक्कठे हो गए। जब महात्मा जी ने बाहर आकर देखा और इक्कठे हुए लोगों पर नजर दौडाई तो देखकर हैरान रह गए। क्योंकि वहां आए गरीब लोगों में गांवों के बडे-बडे जमींदार भी शामिल थे जो जमीन पाने की लालसा से आए थे । तब महात्मा जी ने कहा,''सबसे पहले वह व्यक्ति सामने आए जिसके पास सबसे ज्यादा जमीन है।'' उसके आगे आने पर वे बोले,''बोलो कितनी जमीन चहिए ?'' इस पर उस जमींदार ने कहा कि महाराज जितनी मर्जी दे दो । महात्मा जी उसकी बात सुनकर कुछ देर के लिए चुप हो गए और फिर कुछ सोच कर बोले,''आप सांय ५ बजे तक जहां तक दौड कर वापस आ जायेंगे उतनी जमीन आपकी ।'' महात्मा जी की यह बात सुनकर वह जमींदार बहुत खुश हुआ और उसने दौड़ना शुरु कर दिया। वह इतना दौडा कि दौड़ते-दौड़ते हांफने लगा पर अधिक जमीन पाने की लालसा में बहुत दूर चला गया और बहुत दूर पंहुच जाने के बाद उसके दिमाग में वापसी का विचार आया । मगर मन में अभी भी यही इच्छा थी कि दस कदम और......। लेकिन समय पर न पहुंच पाने की चिंता ने उसे वापस मोड़ दिया। पर अब समय बचा ही कहां था जो वह नियत समय पर वापस आश्रम पहुंच पाता। दौड़ते-दौड़ते उसकी सांसें फूलने लगी, कदम लड़खड़ाने लगे और अब उसका शरीर उसका साथ छोड़ रहा था। हांफते-हांफते जैसे ही वह आश्रम के द्वार के पास पहुंचा तो नियत समय लगभग समाप्त हो चला था सो उसने लेट कर आश्रम की देहली को छूना चाहा लेकिन शरीर अब निष्क्रिय हो चुका था, जैसे ही आगे बढ़ने के लिए उसने लेटना चाहा तो वह गिर गया और गिरते ही दम टूट गया।
महात्मा जी की नज़र उस पर पड़ी और उसे एक नज़र देखकर आए हुए जनसमूह से कहने लगे,'' ..और किसको ,कितनी जमीन चाहिए.. आगे आ जाओ।'' उनकी यह बात सुनकर सब लोग पीछे हट गए। तब महात्मा बोले,''यही दो गज़ जमीन जिसमें यह लेटा हुआ है इसकी असली और सच्ची सम्पत्ति है।'' अब किसी आगंतुक के मन में जमीन लेने की इच्छा नहीं रह गयी थी तथा सभी अपने-अपने घर लौट गए ।
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 4:51 pm 5 टिप्पणियाँ
लेबल: संपत्ति
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
गणतंत्र सौगात
रज में खेल सम्पूर्णता प्राप्त करने वाले ,विश्वमें विभिन्न स्थानों
पर विद्यमान सभी भारतीयों को गणतंत्र की हार्दिक शुभ-कामनाएं |
बढ़ रहे हैं बेतहाशा
दाल चीनी के भाव
हो रहे कला-बाजारी
निश दिन माला माल
बेबस अब किसान है
मजबूर है सांझीदार
खून के आंसू रो रहा
मजदूर का परिवार
खैर ,चाहे जो होता रहे
नहीं अपने बस की बात
हालत मांगते अब तो
एक संघर्ष शुरुआत
या स्वीकार करें सादर इसे
मन गणतंत्र सौगात ||
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 8:24 am 4 टिप्पणियाँ
शनिवार, 9 जनवरी 2010
कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण उत्सव
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 3:34 pm 1 टिप्पणियाँ