है फिक्र किसको
है फुरसत किसे
कौन मिट गया
कौन मिट रहा
नहीं सरोकार
किसी बात से
सिवा खुद के
है चाहता कोई किसे
हर आदमी बस जी रहा
स्वार्थ-निहित जिंदगी
चाहता हर-पल यही
सब करें उसकी बंदगी
कल मिटी इंसानियत
आज बाघ की बारी है
मिट रहा आज बाघ तो
कल मानव की तैयारी है
पर,
फर्क क्या इस बात से
बदल गया है वक्त
इंसानियत के बिना
दिखता नहीं मनुष्यत्व
इस तरह तो अपना भी
नहीं रहेगा अस्तित्व
सच मानिए
अकेला चना
फोड न सकता भाड
संपूर्ण प्राणी-जगत की
हमें चाहिए आड
जरूरत है हमें सबकी
अपने लिए
अपना संसार सुंदर
बनाए रखने के लिए
हो जिंदगी सबकी
इस तरह तो दूर तक
नहीं दिखाई कोई देगा
सोचो , एक बार
एकाकी जीवन होगा
बस अपना जीवन.......
नायक भेदा
9 माह पहले
3 Comments:
सही कहा...उम्दा रचना!
कल मिटी इंसानियत
आज बाघ की बारी है
मिट रहा आज बाघ तो
कल मानव की तैयारी है
बिलकुल सही कहा है....खूबसूरत अभिव्यक्ति है...
Jeevan ka hai moh kise
bas aabh to doobane ki taiyari hai
Baag ki hai chinta kiso
Bas aab to do din ki jindgani hai
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