क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|
नायक भेदा
9 माह पहले
"वसुधैव कुटुम्बकम्" की परिकल्पना
क्या दौर आ गया है
ये देखकर
दिल सहम जाता है
ताज्जुब होता है
कि
आज का आदमी
कितना बहादुर है
खुद शीशे के
मकां में रहता है
औरों पर
पत्थर से
निशाना लगाता है|
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 6:38 am 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अमन सन्देश, निशाना