नव हर्ष मिले
उत्कर्ष मिले
जीवन रुपी संघर्ष में
मंजिल का स्नेहिल
स्पर्श मिले
रहो अर्श पर
हमेशा
ऐसा हर पल
हर आने वाला वर्ष मिले ।
बुधवार, 31 दिसंबर 2008
हर्ष
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 12:06 pm 0 टिप्पणियाँ
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
मैं और तुम
मेरी आँखों में
समाये हो तुम
मेरी सांसों में
बसे हो तुम
मेरा तन
मेरे प्राण हो तुम
मेरी स्तुति
मेरे स्तुत्य हो तुम
मेरी प्रेरणा
मेरा प्रण हो तुम
मेरी साधना
मेरा साहित्य हो तुम
ए-मेरे वतन
मेरी शान हो तुम
मैं अनजान हूँ यहाँ
मेरी पह्चान हो तुम
गर्व से कहता हूँ
मैं हिन्दुस्तानी
हिन्दुस्तान हो तुम ll
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 7:18 pm 1 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 5 जून 2008
बचपन
वह मुरझाया सा चेहरा
हाथों में पत्थर के
दो टुकड़े लिए
जिनसे मिटती सी
प्रतीत हो रही थी
उसकी भाग्यरेखा
'बस' में कभी इधर
कभी उधर
वह नन्ही सी जान
छोटी सी उम्र
लोगों का मनोरंजन
करता हुआ
उनके मन का विषाद
दूर करता
पर !
खुद की खुशियां
शायद खो सी गयी थी
भारी विषाद और थकावट की
चेहरे पर झलक थी
हमारी सारी कोशिशें
शायद बेकार हो गयी हैं
और आज भी
हमारे भविष्य की
स्कूल जाने की उम्र
भीख मांगने में गुजर रही है।
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 3:10 am 0 टिप्पणियाँ
शनिवार, 31 मई 2008
आदमी
बिना किसी हलचल के
स्वार्थ रुपी
लक्ष्य के प्रति
एकदम सचेत
आज का आदमी
बगुले के समान
योगी है
जो शिकार का
इंतजार करता है
और जैसे ही
शिकार नजर आता है
उसे उछालकर
तुरंत निगल जाता है।
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 5:27 pm 2 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 30 मई 2008
डर
बम धमाकों की हो रही
नित नयी आवाज से
अब डर तो लगने लगा है
आदमी की जात से
आजकल ये आदमी को
हो रहा है क्या
वह धरातल से
पाताल में क्यों जा रहा
देखा गुजरते आदमी को
आदमी की लाश से
अब तो डर लगने.....
वह गिरा ही था,पर
आदमी कईं साथ थे
संभलने की सोचता कि
गुजरे सीने से कईं पांव थे
देखा क्षण भर में ही सबने
नहीं प्राण तन के साथ थे
अब तो डर लगने लगा है
आदमी की जात से
अब तो डर......
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 4:28 pm 0 टिप्पणियाँ
शनिवार, 24 मई 2008
मानव
बडा हूँ
अडा हूँ
खडा हूँ
मैं मानव हूँ
नहीं झुकूँगा
नहीं रुकूँगा
और जब तक बस चलेगा
नहीं मरूँगा
मैं मानव हूँ
पथ पर समस्त हूँ
बेशक पथ भ्रष्ट हूँ
फिर भी जीव श्रेष्ठ हूँ
मैं मानव हूँ
पतित हूँ
दिग भ्रमित हूँ
फिर भी अथक सरित हूँ
मैं मानव हूँ
विचारों से भरपूर हूँ
मद में चूर हूँ
पर,मंजिल से दूर हूँ
मैं मानव हूँ
कर्तव्य से विमुख हूँ
तलाशता सुख हूँ
विनाश का मुख हूँ
क्या मैं मानव हूँ ?
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 5:52 am 0 टिप्पणियाँ
शुक्रवार, 23 मई 2008
अमन
हो अमन की शुरुआत
एक नया प्रभात
हर चेहरे पर मुस्कान
भविष्य में हो पूर्ण
दिल का हर अरमान॥
प्रस्तुतकर्ता दिनेश शर्मा पर 1:00 pm 1 टिप्पणियाँ