मेरे मीत
मेरे तन में
बसे मन से
तुम्हारी प्रीत
कुछ ऎसी
होती है प्रतीत
जैसे तम से भरे
मेरे मन में
जला कर रख दिया हो
किसी ने कोई दीप
वैसे भी
मेरे मन पर
तुम्हारी जीत
कुछ ऎसी ही है
जैसे हो कोई
जगत की रीत
या फिर
गहरी अंधेरी रात के बाद
नव-प्रभात
जैसे फूल में सुगंध
मेहंदी में लाल रंग
मधु में मकरंद
कुछ इसी तरह हो
तुम मेरे संग-संग॥
6 Comments:
सुन्दर!
is preet ko unhi barkrar rakhiye sir
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भाई आभार कि आप को साझा-सरोकार की पोस्ट अच्छी लगी.
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आप यहाँ भी आयें तो हमें ख़ुशी होगी!
आपकी कई पोस्ट पढ़ गया.अत्यंत सादगी के साथ अपनी बात रखते हुए आप कई बहुमूल्य बात कह जाते हैं.बहुत सुखद अनुभूति हुई यहाँ आकर.
आपका
शहरोज़
WELL DONE DINESH ... LAGE RAHO
well done dinesh... keep it up
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