गुरुवार, 28 मई 2009

पवन हृदय तीर्थ (पबनावा)

कैथल से कुरूक्षेत्र मार्ग पर कैथल से उतर दिशा में 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गांव पबनावा। इसे पवन हृदय के नाम से जाना जाता था। पवन हृदय का अर्थ है पवन देवता का हृदय । यहां एक सरोवर है। जिसके पश्चिम किनारे पर पवन देव का मन्दिर है। पवन देव का वाहन हिरण भी उनके चित्र में दिखाया गया है।
इसके इलावा यहां भगवान श्री कृष्ण का मन्दिर भी है। जो शैली की दृष्टि से मथुरा वृन्दावन के मन्दिरों जैसे हैं। इस विषय में वामन पुराण में लिखा गया है कि पवन देव अपने पुत्र श्री हनुमान के शोक में इस सरोवर में लीन हो गए थे। ऐसा माना जाता है कि इस तीर्थ में स्नान करने से और उसके बाद महेश्वर का दर्शन करके मनुष्य पाप विमुक्त हो जाता है। महाभारत के वन पर्व में कहा गया हैः-
पवनस्य हृदे स्नात्वा मरूतां तीर्थमुत्तमम्।
तत्र स्नात्वा नरव्याघ्र विष्णुलोके महीयते।।

(महाभारत, वनपर्व 83/104/105)
जनधारणा के अनुसार सरोवर में पवन देव के विलीन होने के बाद 49 पवनें भी यहां एकत्र हो गई और पूरे संसार को बिना पवन के सांस लेना असंभव हो गया।तब ऐसी भयंकर परिस्थिति में ब्रह्मा जी के साथ मिलकर सभी देवताओं ने पवन देव से प्रार्थना की। इसके बाद प्रार्थना से प्रसन्न होकर वायु देव प्रकट हुए और संसार में
वायु का प्रवाह आरम्भ हुआ। अतः इसी कारण से इसे पवन हृदय के नाम से माना जाता है।

2 Comments:

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

दिनेश जी, अभी तक हरियाणा के जितने भी स्थलों के बारे में आपने लिखा है, कम से कम बीसियों बार जा चुके हैं, किन्तु आज तक हम इनके धार्मिक एवं ऎतिहासिक महत्व से पूर्णत: अपरिचित थे। इस चिट्ठे के माध्यम से आप एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे हैं। आभार

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह रै म्हारा हरियाणा....!!
दिनेश जी, इन जानकारियों को देकर आप बड़ा पुनीत कार्य कर रहे हैं... बधाई....

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