शनिवार, 23 मई 2009

श्रंगी,मार्कण्डेय एवं शकुदेव मुनि स्थल

श्रंगी ऋषि स्थल(सांघण):-
कैथल से पश्चिम की ओर 16 किलोमीटर दूर है गांव सांघण । जहां श्रृगी ऋषि का छोटा सा मन्दिर सरोवर के किनारे बना है। इसके अतिरिक्त एक शिव और दूसरा गणेश मंदिर भी है।
श्रृंगी स्थल परिसर में अब बाबा राम नेत्र त्यागी द्वारा एक मुख्य द्वार बनवाया गया है। प्रत्येक रविवार को श्रृंगी ऋषि के दर्शन के लिए लोग आते हैं। यहां 25 एकड़ में फैला एक विशाल सरोवर भी है।श्रृंगी ऋषि द्वारा युग में दशरथ के लिए शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया गया था। यज्ञ के प्रभाव से राजा दशरथ को 4 पुत्र राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हुए थे। द्वापर युग में श्रृंगी के पिता शमीक के गले में राजा परीक्षित ने मरा हुआ सांप डाल दिया था, जिससे क्रोधित होते हुए श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप देते हुए कहा, ‘‘कुलांगर परीक्षित ने मेरे पिता का अपमान करके मर्यादा का उल्लंघन किया है, इसलिए मेरी प्रेरणा से आज के सातवें दिन उसे तक्षक सर्प डस लेगा।’’ कुछ लोग महाभारत में वर्णित शंखिनी के नाम से भी सांघन का नाम जोड़ते हैं।
मार्कण्डेय ऋषि स्थल है (मटोर) :-
कैथल से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है-मटोर। यह स्थल मार्कण्डेय की जन्म भूमि माना जाता है।जनश्रुति के अनुसार पुत्र प्राप्ति हेतु उनकी माता और पिता मृकण्डु ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु तपस्या की थी। शिव कृपा से उन्हें मार्कण्डेय पुत्र रूप में प्राप्त हुए लेकिन अनकी आयु मात्र सोलह वर्ष थी। मार्कण्डेय शिव भक्त थे। 16 वर्ष की आयु में मृत्यु को आया देख ये शिवलिंग से लिपट गये और यमराज को खाली हाथ वापस लौटना पड़ा। मार्कण्डेय अमर होकर तपस्या करने पहाड़ों में चले गए। मार्कण्डेय के जन्म स्थल पर लगभग 3 एकड़ में एक सरोवर गना है। जहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर एक मेला लगता है।
शकुदेव मुनि का स्थल है (सजूमा) :-
कैथल से दक्षिण पश्चिम की ओर 10 मिलोमीटर दूर है-सजूमा। यहां 20 एकड़ में फैला हुए एक सरोवर है जिसे सूर्य कुण्ड कहते हैं। सूर्य कुण्ड के नाम से ही सजूमा प्रसिद्ध तीर्थों की गणना में आता है। एक जनश्रुति के अनुसार महर्षि व्यास के पुत्र भगवान शुकदेव जी ने यहां तपस्या की थी। उनका वेश अवधूत का था। भाद्रपद मास में यहां मेला लगता है। मुनि शुकदेव की प्रतिमा नीचे एक गुफा में है। प्रतिमा तक जाने के लिए लगभग 70 फुट गुफा में होकर जाना पड़ता है।

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