शनिवार, 3 जनवरी 2009

कहीं कुछ हुआ जरुर है

कहीं कुछ हुआ जरुर है
कल तक शांत था
हर तरफ उल्लास था
फिर आज क्यूं
चुप-सा ये शहर है
कहीं कुछ हुआ..........
ना वह नूर है
ना है वो रौनक
हर तरफ़ हर कोई
इक नशे में चूर है
कहीं कुछ हुआ .........
हैं राह सारी सुनसान
नहीं दूर तक कोई है
कत्लेआम हुआ लगता
आज फिर जरुर है
कहीं कुछ हुआ............
बदल रहा है आदमी
आदमियत से दूर है
चढ़ा हर आदमी पर
दौलत का सरुर है
कहीं कुछ हुआ...........
कहीं कुछ हुआ जरुर है ।

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