शुक्रवार, 22 मई 2009

कैथल के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान

कुरुक्षेत्र के पावन ४८ कोश क्षेत्र में स्थित कैथल में भी कुछ तीर्थ प्राप्त होते हैं । इसके प्रसिद्ध तीर्थ निम्नलिखित हैं जिनके महत्त्व पर प्रकाश डाला जा रहा है -
वृद्धकेदार तीर्थ स्थल:-
कैथल से उत्तर पूर्व में स्थित इस तीर्थ का बहुत महत्व है। इसके एक ओर पार्क झील के रूप में इसे विकसित किया गया है तथा इसका दूसरा रूप अभी तक उपेक्षित है। वामन पुराण में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस स्थान पर तर्पण करके भगवान शिव को प्रणाम करने के बाद तीन चल्लू पानी पिता है, वह केदार तीर्थ पर जाने का फल प्राप्त कर लेता है -
कपिलस्थेति विख्यातं सर्वपातकनाशनम्।
यस्मिन् स्थितः स्वयं देवो वृद्धकेदारसंज्ञितः ।
(वामन पुराण, 36/14)
एवमेव-कपिष्ठलस्य केदारं समासाद्य सुदुर्लभम् ।
अन्तर्धानमवाप्नोति तपसा दग्धकिल्विषम् ।।
(महाभारत, वन पर्व 83/74)
यहां एक शिव मन्दिर बना हुआ है जो अष्टकोणीय है। यहां बने सरोवर की बुजियां भी अष्टकोणीय आकार लिए हैं। वामन पुराण में ऐसा भी कहा गया है कि कपिस्थल नामक तीर्थ में वृद्ध केदार नामक भगवान स्वयं विराजमान हैं।
ग्यारह रूद्री मन्दिर:-
कैथल के ही पश्चिम में महाभारत काल से एक प्रसिद्ध मंदिर है ग्यारह रूद्री । आज यह मन्दिर पूर्णतया आधुनिक रूप से विकसित किया जा चुका है। जिसका प्रवेश द्वार बहुत ही सुन्दर दिखाई पड़ता है। इस मन्दिर में ग्यारह रूद्रों की स्थापना की गई है। जिनके विषय में महाभारत में वर्णित उल्लेख के अनुसार ब्रह्मा जी के मानस पुत्र जो महान ऋषि थे मृगव्याध, सूर्प, निऋति, विनाकी, अहिवुथ, अजैकपाद दहन, ईश्वर, कपाली, स्थाणु और भव। महाभारत में लिखा है:-
एकादशसुताः स्थाणोः ख्याताः परमतेजसः।
मृगव्याधश्चसर्पश्च निऋतिश्चमहायशाः।
अजैकपादहिर्बुधन्यः पिनाकी च परंतप।
दहनोथेश्वरश्चैव कपाली च महाधुनिः।
स्थाणुर्मगश्च भगवान् रूद्रा एकादशस्मृताः।
(महाभारत, आदि पर्व 66/1-3)
ये एकादश ही रूद्रों के रूप में प्रसिद्ध हुए हैं। इस मन्दिर में जलहरी में ग्यारह रूद्र स्थापित किए गए हैं। मन्दिर के दक्षिण में सर्वदेव नामक तीर्थ है। जिसे सकलसर भी कहा गया है।

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