बुधवार, 5 अगस्त 2009

चित्रकूट धाम

विंध्य पर्वत के उत्तर में है चित्रकूट धाम। यह न केवल एक धार्मिक स्थान है, बल्कि अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के कारण भी काफी चर्चित है।

शांति : चित्रकूट पर्वत मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश, दोनों राज्यों की सीमाओं को घेरता है। वनवास के दौरान भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ सबसे अधिक समय तक यहीं निवास किया था। यात्रियों को चित्रकूट गिरि, स्फटिक शिला, भरत कूप, चित्रकूट-वन, गुप्त गोदावरी, मंदाकिनी की यात्रा करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है। चित्रकूट गिरि को कामद गिरि भी कहते हैं, क्योंकि इस पर्वत को राम की कृपा प्राप्त हुई थी। राम-भक्तों का विश्वास है कि कामद गिरि के दर्शन मात्र से दुख समाप्त हो जाते हैं। इसका एक और नाम कामतानाथ भी है।

अनुसूइया की तपोभूमि : चित्रकूट में 'पयस्विनी' नदी है, जिसे मंदाकिनी भी कहते हैं। इसी के किनारे स्फटिक शिला पर बैठ कर राम ने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से सीता को सजाया था। पयस्विनी के बायीं ओर प्रमोद वन है, जिससे आगे जानकी कुंड है। यहां स्थित अनुसूइया आश्रम महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूइया की तपोभूमि कहलाती है। कहते हैं कि अत्रि की प्यास बुझाने के लिए अपने तप से अनुसूइया ने पयस्विनी को प्रगट कर लिया। गुप्त गोदावरी की विशाल गुफा में सीताकुंड बना हुआ है। कामदगिरि के पीछे लक्ष्मण पहाड़ी स्थित है, जहां एक लक्ष्मण मंदिर है। इसके अलावा, चित्रकूट में बांके सिद्ध, पम्पा सरोवर, सरस्वती नदी (झरना), यमतीर्थ, सिद्धाश्रम, हनुमान धारा आदि भी है। राम-भक्त कहते हैं कि राम जिस स्थान पर रहते हैं, वह स्थान ही उनके लिए अयोध्या के समान हो जाता है।

पयस्विनी चित्रकूट की 'अमृतधारा' के समान है। मंदाकिनी नाम से जानी जाने वाली पयस्विनी को कामधेनु और कल्पतरु के समान माना जाता है। शिवपुराण के रुद्रसंहिता में भी पयस्विनी का उल्लेख है।

तुलसी-रहीम की मित्रता : वाल्मीकि मुनि ने चित्रकूट की खूब प्रशंसा की है। तुलसीदास ने माना है कि यदि कोई व्यक्ति छह मास तक पयस्विनी के किनारे रहता है और केवल फल खाकर राम नाम जपता रहता है, तो उसे सभी तरह की सिद्धियां मिल जाती हैं।

रामायण और गीतावली में भी चित्रकूट की महिमा बताई गई है। दरअसल, यही वह स्थान है, जहां भरत राम से मिलने आते हैं और पूरी दुनिया के सामने अपना आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यही वजह है कि इस स्थान पर तुलसी ने भरत के चरित्र को राम से अधिक श्रेष्ठ बताया है। देश में सबसे पहला राष्ट्रीय रामायण मेला चित्रकूट में ही शुरू किया गया। तुलसी-रहीम की मित्रता की कहानी आज भी यहां बड़े प्रेम से न केवल कही, बल्कि सुनी भी जाती है। रहीम ने कहा--जा पर विपदा परत है, सो आवत यहि देश

उल्लेखनीय है कि नानाजी देशमुख का ग्रामोदय विश्वविद्यालय, आरोग्य/धाम, विकलांगों के लिए स्वामी रामभद्राचार्य विश्वविद्यालय यहीं स्थित है ।

साभार :जागरण YAHOO! India

2 Comments:

Asha Joglekar said...

चित्रकूट के बारे में इतना अच्छा लेख पठवाने के लिये आभार ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

चित्रकूट के बारे में इतनी विस्तारपूर्वक जानकारी देने के लिए आभार्!!

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